मेरा जन्मस्थान, पुणे, वहाँ की अशुद्ध हिंदी के लिए पूरे भारत में प्रसिद्द है| किंबहुना हम पुणेकरों की बोली हुई हिंदी मैं अधिकतर मराठी शब्दोंका उनुचित उपयोग होता है, जिस कारण सामनेवाले व्यक्ति को बोला हुआ हिंदी समझने में कठिनाई हो सकती है| यह एक अलग प्रश्न है की हम पुणेकर हमारी हिंदी में किस प्रकार सुधारणा कर सकते है, किंतु एक बात स्पष्ट है-और वह ये है की हमें उचित हिंदी की शिक्षा लेने की आवश्यकता है| हिंदी सीखने का निश्चय कर यदि मै स्वयं हिंदी में संभाषण तथा लेखन न करू, तो केवल हिंदी की शिक्षा ग्रहण करने से कोई प्रगति नहीं होगी| इस कारण मैंने स्वयं आज पहली बार हिंदी में लिखने का प्रयास किया है| इसके कुछ कारण मैंने निचे दिए है.
पहली बात तो है की वर्तमान में मुझे हिंदी लिखने में कष्ट हो रहा है- उसमे कोई सरलता, सहेजता नहीं है. मन में जो विचार आ रहे है, उन्हें उचित रूप से ज्ञाय देकर शब्दों में प्रकट करने में कठिनाई हो रही है, जो भविष्य में मै निकलवाना चाहता हूँ| यदि भविष्य में मुझे मेरे विचार अधिकतर लोगों के सामने रखने के लिए हिंदी भाषा यह एकमात्र साधन हो, तो यह कार्य करने में कोई कठिनाई न हो इस भावना से हिंदी जानने का यह प्रयास है| मेरा दूसरा विचार इतिहास से निगडित है| मुझे महाकवि भूषणजी के शिवाजी महाराज पर रची हुई कविताओं में रूचि है| किंतु ठीक तरहसे हिंदी न जानने के कारण वह कविताएँ पढने में और उसका भावार्थ समझने में कठिनाई होती है| उस कवित्तों के अर्थ को जितना हो सके उतना समझ पाऊ यह बात ध्यान में रखकर मेरी टूटी-फूटी हिंदी को सुधरने का संकल्प है|
तीसरी बात जो मेरे ध्यान में आई है, वह ये है की हम जो अपने दैनिक जीवन में हिंदी बोलते है, उसमे बहुत मात्रा में उर्दू, अंग्रेजी तथा फारसी शब्दों का प्रयोग होता है. पुणेकर अपने हिंदी के लिए जाने नहीं जाते, किंतु अपने शुद्ध मराठी के लिए अवश्य जाने जाते है, किंबहुना भाषा को शुद्ध रखना यह हम लोगोंने अपने आप पे लिया हुआ उत्तरदायित्व है| एक पुणेकर होने के नाते, मेरा प्रयास यही होता है की मेरे बोले हुए मराठी में अंग्रेजी तथा अन्य भाषा के शब्द अल्पमात्रा में आए, या आए ही न| तथा मेरा यही प्रयत्न रहेगा की हिंदी सीखने की साथही जब संभव हो तब उर्दुविरहित हिंदी का अधिकतर आकलन तथा प्रयोग करूँ| मेरी हिंदी उचित प्रकार से न बोल पाने की जो त्रुटी है, उसे मै आने वाले मात्र एक-दो वर्षों में नष्ट करना चाहता हूँ, तथापि, स्वयं को इस योग्य बनाना चाहता हूँ की एकाध सार्वजनिक मंचसे हिंदी में संभाषण करने में कोई कठिनाई न हो|
मुझे ज्ञात है की वर्तमान में मेरा हिंदी दोषविरहित नहीं है, और उसे दोषमुक्त करने के लिए मुझे अथक परिश्रम करने पड़ेंगे. किंतु भविष्य में कोई मुझे मेरी अशुद्ध हिंदी के कारण कलंकित न करे, तथा मेरे माथे पे यह निशान न लगाए, यह ध्यान में रखकर मैंने यह निस्चित कर लिया है की जितना हो सके, उतना शुद्ध हिंदी सीखने का प्रयास अवश्य करूँगा. मेरे हिंदी में सुधारणा लाने के लिए, और मेरी भाषा में उर्दू का प्रमाण घटाने के लिए मुझे आप सब लोगों की सहाय्यता की आवश्यकता है, तथा मेरी सभी लोगों से यह विनंती है की आप मुझे हिंदी सिखने में योग्य मार्गदर्शन दे| शालेय जीवन के १० वर्ष पश्चात, हिंदी में लिखने का यह मेरा पहला ही अवसर है| इस कारण इस प्रयास को केवल एक प्रयास ही माने ऐसा मेरा सभी वाचकोंसे निवेदन है| यदि मुझसे कोई गलती हो जाए, तो एक बार मुझे क्षमा करे, और वह गलती को सुधरने की राय दे| मै सदैव आप सभी का ऋणी रहूँगा|
धन्यवाद.
पहली बात तो है की वर्तमान में मुझे हिंदी लिखने में कष्ट हो रहा है- उसमे कोई सरलता, सहेजता नहीं है. मन में जो विचार आ रहे है, उन्हें उचित रूप से ज्ञाय देकर शब्दों में प्रकट करने में कठिनाई हो रही है, जो भविष्य में मै निकलवाना चाहता हूँ| यदि भविष्य में मुझे मेरे विचार अधिकतर लोगों के सामने रखने के लिए हिंदी भाषा यह एकमात्र साधन हो, तो यह कार्य करने में कोई कठिनाई न हो इस भावना से हिंदी जानने का यह प्रयास है| मेरा दूसरा विचार इतिहास से निगडित है| मुझे महाकवि भूषणजी के शिवाजी महाराज पर रची हुई कविताओं में रूचि है| किंतु ठीक तरहसे हिंदी न जानने के कारण वह कविताएँ पढने में और उसका भावार्थ समझने में कठिनाई होती है| उस कवित्तों के अर्थ को जितना हो सके उतना समझ पाऊ यह बात ध्यान में रखकर मेरी टूटी-फूटी हिंदी को सुधरने का संकल्प है|
तीसरी बात जो मेरे ध्यान में आई है, वह ये है की हम जो अपने दैनिक जीवन में हिंदी बोलते है, उसमे बहुत मात्रा में उर्दू, अंग्रेजी तथा फारसी शब्दों का प्रयोग होता है. पुणेकर अपने हिंदी के लिए जाने नहीं जाते, किंतु अपने शुद्ध मराठी के लिए अवश्य जाने जाते है, किंबहुना भाषा को शुद्ध रखना यह हम लोगोंने अपने आप पे लिया हुआ उत्तरदायित्व है| एक पुणेकर होने के नाते, मेरा प्रयास यही होता है की मेरे बोले हुए मराठी में अंग्रेजी तथा अन्य भाषा के शब्द अल्पमात्रा में आए, या आए ही न| तथा मेरा यही प्रयत्न रहेगा की हिंदी सीखने की साथही जब संभव हो तब उर्दुविरहित हिंदी का अधिकतर आकलन तथा प्रयोग करूँ| मेरी हिंदी उचित प्रकार से न बोल पाने की जो त्रुटी है, उसे मै आने वाले मात्र एक-दो वर्षों में नष्ट करना चाहता हूँ, तथापि, स्वयं को इस योग्य बनाना चाहता हूँ की एकाध सार्वजनिक मंचसे हिंदी में संभाषण करने में कोई कठिनाई न हो|
मुझे ज्ञात है की वर्तमान में मेरा हिंदी दोषविरहित नहीं है, और उसे दोषमुक्त करने के लिए मुझे अथक परिश्रम करने पड़ेंगे. किंतु भविष्य में कोई मुझे मेरी अशुद्ध हिंदी के कारण कलंकित न करे, तथा मेरे माथे पे यह निशान न लगाए, यह ध्यान में रखकर मैंने यह निस्चित कर लिया है की जितना हो सके, उतना शुद्ध हिंदी सीखने का प्रयास अवश्य करूँगा. मेरे हिंदी में सुधारणा लाने के लिए, और मेरी भाषा में उर्दू का प्रमाण घटाने के लिए मुझे आप सब लोगों की सहाय्यता की आवश्यकता है, तथा मेरी सभी लोगों से यह विनंती है की आप मुझे हिंदी सिखने में योग्य मार्गदर्शन दे| शालेय जीवन के १० वर्ष पश्चात, हिंदी में लिखने का यह मेरा पहला ही अवसर है| इस कारण इस प्रयास को केवल एक प्रयास ही माने ऐसा मेरा सभी वाचकोंसे निवेदन है| यदि मुझसे कोई गलती हो जाए, तो एक बार मुझे क्षमा करे, और वह गलती को सुधरने की राय दे| मै सदैव आप सभी का ऋणी रहूँगा|
धन्यवाद.
* कुछ कुछ :
ReplyDelete* मुझे ज्ञात है की वर्तमान में मेरा हिंदी दोषविरहित नहीं है ???
* सहाय्यता / सहायता * ऋणी / आभारी
: बहुत अच्छा !!! शाबाश !!! :)
ReplyDelete